तेलीबांधा तालाब के किनारे खाली होने वाली दस एकड़ जमीन में से तीन एकड़ में रिहायशी कॉम्प्लेक्स बनाकर लोगों को बसा दिया जाएगा। बाकी सात एकड़ जमीन का क्या होगा? इस सवाल पर नगरीय प्रशासन विभाग से नगर निगम तक रहस्यमयी खामोशी है। अफसरों के मुताबिक इसे विकसित करने की योजना अब तक फाइनल नहीं हो सकी है। पहली खबर महापौर किरणमयी नायक की तरफ से आई है कि बची हुई जगह में दो गार्डन बनेंगे और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के शो-रूम या रेस्टॉरेंट खोले जा सकते हैं। माना जा रहा है कि बची सात एकड़ जगह पर कोई बड़ी व्यावसायिक तिकड़म करने की तैयारी है।राज्य में यह पहला मामला है जिसमें दस एकड़ जगह से कब्जे हटाए जाने हैं।
नगर निगम ने अब तक जितनी भी जगह कब्जे साफ किए, वहां का प्लान पहले ही तैयार कर लिया। तेलीबांधा के मामले में तीन एकड़ का प्लान तो तैयार है, लेकिन बचे हुए सात एकड़ के बारे में कोई योजना ही नहीं है। नगरीय प्रशासन मंत्री और सचिव से लेकर महापौर और निगम के आला अफसर सिर्फ यही कह रहे हैं कि गार्डन वगैरह डेवलप किए जाएंगे। अभी इसकी प्लानिंग बाकी है।
प्लान ही नहीं किया - सात एकड़ पर क्या बनेगा, इसका प्लान अभी नहीं बना है। सिर्फ इतना कह सकता हूं कि एक इंच जमीन बरबाद नहीं होगी। व्यावसायिक इस्तेमाल की भी कोई योजना नहीं है।राजेश मूणत, मंत्री-नगरीय प्रशासन
कम्पनियों को कुछ हिस्सा - बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सामने का कुछ हिस्सा दिया जा सकता है। शेष हिस्से में गार्डन डेवलप किए जाएंगे। मरीन ड्राइव की तर्ज पर फोरलेन सड़क भी बनेगी।डॉ. किरणमयी नायक, महापौर, रायपुर
टेंडर भी चुपचाप - नगर निगम ने रिहायशी कॉम्प्लेक्स बनाने का काम मुम्बई की कम्पनी ओमनी प्राइवेट लिमिटेड को दिया है। यह कम्पनी अहमदाबाद में भी इसी तरह का रिहायशी इलाका डेवलप कर रही है। मकान बनाने का ठेका 24 करोड़ 36 लाख रूपए में दिया गया। कॉम्प्लेक्स के टेंडर खामोशी से दिसम्बर 2010 में ही हो गए। निगम अफसरों का दावा है कि ई-टेंडरिंग थी, इसलिए चर्चा नहीं हुई।
नहीं कर सकते दूसरा उपयोग - नगरीय प्रशासन विभाग से जुड़े कुछ आला अधिकारियों ने बताया कि तेलीबांधा तालाब के किनारे की जगह का कोई दूसरा उपयोग नहीं किया जा सकता। तालाब के वॉटर बॉडी को दुरूस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने करीब 28 करोड़ रूपए दिए हैं। वहां रायपुर विकास प्राधिकरण ने पाथ-वे बनाया है, जिसे नगर निगम को सौंप दिया जाएगा। केंद्र सरकार की इस योजना के अनुसार तेलीबांधा तालाब को पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए राशि दी गई है और उसे कब्जामुक्त कराने के बाद बची जमीन का अन्य इस्तेमाल करना प्रतिबंधित किया गया है।
सुलगते सवाल - तेलीबांधा तालाब को कब्जामुक्त कराने में नगर निगम के प्रशासन ने इतनी तत्परता क्यों दिखाई?
कब्जामुक्त कराने से पहले नगर निगम ने खाली जमीन के उपयोग के बारे में कोई ठोस योजना क्यों नहीं बनाई?
तालाब के कब्जामुक्त होते ही हाईकोर्ट से स्थगन मिलना किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं। अगर ऎसा नहीं है तो कार्रवाई शुरू करने से पहले नगर निगम ने हाईकोर्ट में कैविएट क्यों नहीं लगाई?
अरबों रूपए की लागत वाली इस जमीन की सुरक्षा के लिए नगर निगम प्र्रशासन ने क्या योजना बनाई है?
कब्जा हटाने का अभियान शुरू होने से ठीक पहले महापौर का दिल्ली में एक मंत्री से मिलने के पीछे क्या गणित है?
नगर निगम ने अब तक जितनी भी जगह कब्जे साफ किए, वहां का प्लान पहले ही तैयार कर लिया। तेलीबांधा के मामले में तीन एकड़ का प्लान तो तैयार है, लेकिन बचे हुए सात एकड़ के बारे में कोई योजना ही नहीं है। नगरीय प्रशासन मंत्री और सचिव से लेकर महापौर और निगम के आला अफसर सिर्फ यही कह रहे हैं कि गार्डन वगैरह डेवलप किए जाएंगे। अभी इसकी प्लानिंग बाकी है।
प्लान ही नहीं किया - सात एकड़ पर क्या बनेगा, इसका प्लान अभी नहीं बना है। सिर्फ इतना कह सकता हूं कि एक इंच जमीन बरबाद नहीं होगी। व्यावसायिक इस्तेमाल की भी कोई योजना नहीं है।राजेश मूणत, मंत्री-नगरीय प्रशासन
कम्पनियों को कुछ हिस्सा - बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सामने का कुछ हिस्सा दिया जा सकता है। शेष हिस्से में गार्डन डेवलप किए जाएंगे। मरीन ड्राइव की तर्ज पर फोरलेन सड़क भी बनेगी।डॉ. किरणमयी नायक, महापौर, रायपुर
टेंडर भी चुपचाप - नगर निगम ने रिहायशी कॉम्प्लेक्स बनाने का काम मुम्बई की कम्पनी ओमनी प्राइवेट लिमिटेड को दिया है। यह कम्पनी अहमदाबाद में भी इसी तरह का रिहायशी इलाका डेवलप कर रही है। मकान बनाने का ठेका 24 करोड़ 36 लाख रूपए में दिया गया। कॉम्प्लेक्स के टेंडर खामोशी से दिसम्बर 2010 में ही हो गए। निगम अफसरों का दावा है कि ई-टेंडरिंग थी, इसलिए चर्चा नहीं हुई।
नहीं कर सकते दूसरा उपयोग - नगरीय प्रशासन विभाग से जुड़े कुछ आला अधिकारियों ने बताया कि तेलीबांधा तालाब के किनारे की जगह का कोई दूसरा उपयोग नहीं किया जा सकता। तालाब के वॉटर बॉडी को दुरूस्त करने के लिए केंद्र सरकार ने करीब 28 करोड़ रूपए दिए हैं। वहां रायपुर विकास प्राधिकरण ने पाथ-वे बनाया है, जिसे नगर निगम को सौंप दिया जाएगा। केंद्र सरकार की इस योजना के अनुसार तेलीबांधा तालाब को पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए राशि दी गई है और उसे कब्जामुक्त कराने के बाद बची जमीन का अन्य इस्तेमाल करना प्रतिबंधित किया गया है।
सुलगते सवाल - तेलीबांधा तालाब को कब्जामुक्त कराने में नगर निगम के प्रशासन ने इतनी तत्परता क्यों दिखाई?
कब्जामुक्त कराने से पहले नगर निगम ने खाली जमीन के उपयोग के बारे में कोई ठोस योजना क्यों नहीं बनाई?
तालाब के कब्जामुक्त होते ही हाईकोर्ट से स्थगन मिलना किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं। अगर ऎसा नहीं है तो कार्रवाई शुरू करने से पहले नगर निगम ने हाईकोर्ट में कैविएट क्यों नहीं लगाई?
अरबों रूपए की लागत वाली इस जमीन की सुरक्षा के लिए नगर निगम प्र्रशासन ने क्या योजना बनाई है?
कब्जा हटाने का अभियान शुरू होने से ठीक पहले महापौर का दिल्ली में एक मंत्री से मिलने के पीछे क्या गणित है?
1 टिप्पणी:
khamoshi se to hona hi bhai sabhi ka khel hai isme
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