आपने पिछले अंक में (जनता बहुत चलाक है.) पढ़ा था की महापौर को समस्या से अवगत करने हेतु संघ द्वारा महापौर से समय लिया गया था परन्तु किसी कारणवश उनका आना नहीं हो पाया अब आगे.........
दुसरे दिन हम सभी सदस्य मोह्लावासीयो को बताने लगे की महापौर इस रविवार नहीं आ पाएंगी. इससे सभी मोह्लावासी उदास हो गए और कहने लगे, आये जाहे ना आये अगली बार कोई नहीं रहेगा. यहाँ तक की कुछ ने तो यह कह दिया की आप लोग बस झूठ बोलते है. महापौर का क्या काम है ? उसका मतलब निकल गया, अब वो क्या करेगी आकर. कुछ लोग कहने लगे की आप लोग राजनीति मत करो यहाँ पर जो राजनीति करेगा उसे बहुत मार पड़ेगी. हमें हमारे हाल पर छोड़ दो नहीं तो ठीक नहीं होगा. हमारे द्वारा उन्हें समझाने की कोशिश किया गया परन्तु वे मानने वाले नहीं थे. ये इस प्रकार के लोग होते है जो खुद सामने नहीं आयेगे परन्तु किसी और को भी नहीं आने देंगे. इन्ही कुछ लोगों की वजह से हम सब पीछे है. हमारे संगठन सचिव श्री अब्दुल रउफ खान ने कहा की इनकी बातों को बुरा मत मानो, ये ऐसे ही है, बस टांग खीचते है. हाथी चले बाज़ार कुत्ते भोके हज़ार. अच्छे कार्य के लिए हमेशा ठोकर खाना पड़ता है. बस अपना कार्य करते रहो.
मैंने कहा - यदि सभी इन लोगों के जैसे सोचेंगे तो कौन आगे आएगा. किसी को तो आगे आना है. या तमाशा देखते रहेंगे ?
सभी ने कहा - आप ठीक बोल रहे है. हमें अपने कार्य को देखना चाहिए, आगे क्या करना है उसे सोचे ? फिर हम सभी ने यह निर्णय लिया की महापौर के पास दुबारा जाकर समय फ़ाइनल करेंगे, सभी ठीक ४ बजे नगर निगम कार्यालय में आ जाना कहते हुए अपने अपने कार्य को निकल पड़े.
मैं अपने ऑफिस के मित्र दीपक यादव के साथ चाय पीने ४ बजे नीचे उतरा था. तभी संघ के अध्यक्ष श्री धनेश्वर लहरी (नरेश भैया) जी का फ़ोन आया. उन्होंने कहा - मैं अभी रस्ते में हूँ, मैं दिलीप भाई के साथ पहचुंगा, तुम कहाँ हो ? मैंने कहा - मैं भी निकल रहा हूँ. वही मिलता हूँ. फिर क्या था हमारे सचिव श्री पार्थो जी का भी फ़ोन आने लगा. मैं पहुचने वाला था तो फ़ोन नहीं उठाया और उनके पास पहुँच गया.
पार्थो जी ने कहा - अरे यार मैं कब से निगम कार्यालय पहुँच कर तुम लोगो का इंतजार कर रहा हूँ अभी तक हमारे अध्यक्ष भी नहीं पहुंचे. मैंने कहा की वो भी रास्ते मैं है. बस आ ही रहे होंगे. थोड़े देर में वे भी आ गये. हम सभी तैयारी कर महापौर के पास गए. थोड़े इन्तजार के बाद महापौर मीटिंग ख़त्म कर आई. बहुत से लोग उनका इन्तजार कर रहे थे. उनके आते ही सभी उन्हें मुस्कुराते हुए नमस्कार किये. कुछ लोगो का महापौर के नए कार्यालय आने पर उन्हें बधाई देने के लिए ताँता भी लगा हुआ था. एक पार्टी ने मिठाई का डिब्बा महापौर को दिया महापौर ने सभी को खिलाने का इशारा किया फिर क्या था सभी की ओर मिठाई का डिब्बा घूमता हुआ मेरे पास भी आई मैंने मिठाई उठाई, काजू कतली बहुत ही अच्छी लगी.
महापौर की नज़र हमारे पास पड़ी उन्होंने तपाक से बोला - अरे, आप लोग बोरिया वाले हो ना ?
संघ के अध्यक्ष ने खड़े होकर कहा - जी मैडम
महापौर ने कहा - मैंने मंगलवार को ८ बजे आने के लिए कह चुकी हूँ फिर आप लोग कैसे.?
नरेश भैया ने कहा - हमें किसी प्रकार की कोई सुचना नहीं मिली है , तो कंफर्म करने आये थे.
महापौर ने कहा - क्या मुझे कार्ड छपवाना पड़ेगा ? ८ बजे आ रही हूँ. यदि कोई दारु पिया हुआ मेरे पास आया तो ठीक नहीं होगा ? वहां किसी भी प्रकार का हल्ला चिल्ला नहीं होना चाहिए इसकी जिम्मेदारी आप लोगों की है.
पार्थो जी ने तुरंत कहा - देखिये महोदया हम इतनी जनता में कब कौन क्या करे नहीं कह सकते है. मगर एक बात है जनता इतनी जल्दी भी सुबह ८ बजे नहीं पी सकती. यदि इस प्रकार से कोई आपके पास आये तो आप जरुर उसे एक तमाचा मार सकती है.
महापौर ने कहा - मेरा बस चलता तो जरुर मारती, मीडिया वाले रहतें है इसलिए कुछ नहीं कर सकती. हम सभी हँसते हुए, ठीक है कह कर बाहर आ गये.
कार्यालय से बाहर आकर हमें बहुत बुरा लग रहा था. हमने तभी अटकले लगाना चालू किया की हो न हो जरुर महापौर को पार्षद द्वारा भ्रमित किया गया होगा तभी उनके द्वारा रविवार को आने के लिए मना किया गया था. हमें समझ नहीं आ रहा था की इतनी जल्दी सभी को कैसे खबर किया जाये. हम सभी तुरंत निकल कर तैयारी करने के लिए बोरिया प्रस्थान किया. रात के २ बजे तक हमें नींद नहीं आई, बस तैयारी में लगे थे. सुबह जल्दी उठना था इसलिए मीटिंग जल्द ख़त्म कर सभी सोने के लिए चले गए. सुबह 6 बजे उठ कर, सभी अपने अपने कार्य पर लग गए कोई फूल लेने गया] तो कोई बैनर- पोस्टर लगाने में लग गया. धीरे-धीरे समय का पता ही नहीं चला ८ बजे आने वाली महापौर मैडम ९.३० को पहुची. उनका जोरदार तरीके से स्वागत किया गया. उनके चेहरे पर मीठी मुस्कान थी. उन्होंने इसकी आशा नहीं की थी की इस तरह से उनका स्वागत सत्कार होगा. उन्होंने तो सोचा भी नहीं था की वे यहाँ जाने के लिए डर रही थी. वहां इतना अच्छा रेस्पोंस मिलेगा. सबसे पहले उनका स्वागत किया गया और फिर अपनी समस्याओ के बारे में अवगत कराया गया. पार्षद महोदय भी दो शब्द कहे और महापौर ने भी ख़ुशी-ख़ुशी समस्याओ का निराकरण करने का आश्वासन दिया. और चली गयी.
हमें ख़ुशी हुई की हमारे प्रयास कामयाब हो गया. पूरे कार्यक्रम के लिए संघ के सदस्य द्वारा १०० - १०० रुपये चंदा किया गया था. बजट ज्यादा हो गया था, संघ के सचिव श्री पार्थो भैया द्वारा अतिरिक्त १००० रुपये दिया गया, जिसे बाद में चंदा कर लौटने की बात तय की गयी. फिर सभी अपने अपने कार्य के लिए चले गए.
शाम को ८ बजे घर वापसी में पता चला की कुछ लोंगों द्वारा तरह-तरह की बातें हो रही है, कोई कह रहा है की महापौर ने स्वागत समारोह के लिए ५००० रुपये दिया. तो कोई कह रहा था की १०० - १०० रुपये चंदा कर, बचाकर खूब मौज मस्ती किया गया है. तो कोई कहा सभी सदस्य को १००० रुपये मिले है.
अब आप ही बताइए की हमें समारोह के लिए पार्थो जी से उधार १००० रुपये लेने पड़े और ये लोग तरह-तरह की बातें कर रहे है. खैर इसे छोडिये इनका काम ही यही है एक रुपये देना नहीं और ५००० रुपये की बात करते है. किसी ने सच कहा है की " हाथी चले बाज़ार,कुत्ते भोंके हज़ार" .................... शुक्रिया
3 टिप्पणियां:
बहुत ही अच्छी बात बताई है आपने भलाई कर और @@***
अगर मैं आपकी जगह रहता तो सब कुछ छोड़ देता
thik baat hai bus apna kar karo - Abhishek, Rajsthan
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