मंगलवार, 26 जुलाई 2011

जरूरतमंद की मदद कर, एक बार सुकुन की अनुभूति करकें देखें

मेरे मोहल्ले की एक विधवा वृध्दा महिला जिसकी उम्र लगभग 65 साल है। उसके 2 बेटे हैं। उसका बड़ा लड़का है पर ना के बराबर वह अपने माता और अपने बीमार छोटे भाई को छोड़कर अपनी बीबी के साथ अलग रहता है। वृध्दा और उसका बीमार पुत्र दोनों साथ रहतें है। 5 साल पहले उसका छोटा पुत्र खेलता, कुदता और डांस करता मगर जालिम बीमारी से उसकी खुशी देखी नहीं गई और बेचारा बीमारग्रस्त हो गया। बहुत से डाक्टरों और दवा-दारू किया गया परन्तु वह ठीक नही हो पाया। उसे मेकाहारा में भर्ती कराया गया। डाक्टरों ने आपरेशन की बात की गरीबी रेखा कार्ड होने के कारण सरकार द्वारा संजीवनी कोष से सहायता राशि प्राप्त हुई और आपरेशन भी हो गया किन्तु पहले थोड़ा बहुत चल फिर सकता था मगर आपरेशन के बाद तो और प्राब्लम होने लगा। अब वह उठ बैठ नही सकता, उसका देखरेख उसकी वृध्दा माता को करनी पड़ती है। बस बिस्तर पर पड़ा रहता हैं और भगवान से दुआ करता है कि कब उसे मुक्ति मिलें। उम्र अधिक होने के कारण वह अधिक कार्य भी नही कर सकती। बीमार बेटे को छोड़कर वह कहीं जा भी नहीं सकती, बस आस-पास ही किसी के यहां बर्तन साफ कर, पोछा लगाकर अपना व बेटे का पेट पालती थी।
दिनांक 18.04.2011 को तेलीबांधा तालाब योजना में जलविहार को तोड़कर निवासियों को बोरियाकला में शिफ्ट किया गया है। तब से और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा है। बीमार बेटे को छोड़कर बोरियाकला से रायपुर लगभग 13 कि.मी. दूर जाये भी तो कैंसे? राशन कार्ड से चावल तो मिलता है परन्तु जीवन यापन के लिए केवल चावल ही काफी नहीं है। केवल चावल को खाकर कोई रह सकता है, क्या ? साग-सब्जी, हल्दी, मिर्च, तेल, नमक की आवश्यकता तो आम आदमी को होती ही है। 2 माह तक कैसे उनका गुजारा हुआ है वहीं जानती हैं। एक दिन मैं उसी ब्लाक में अपने रिश्तेदार के यहां गया था। वापसी में, मेरा अचानक उनके घर जाना हुआ। मिलने पर मुझसे उन्होंने मदद की गुहार लगाई ( इससे पहले भी मैं मेकाहारा में आपरेशन के वक्त उनके लिए दौंड भाग किया था ) मुझसे उनकी हालत देखी नहीं गई। मैंने ठान लिया की इनके लिए कुछ ना कुछ जरूर करूंगा। मेरा अंतर्मन मुझे गवाही दे रहा था कि इंसानियत के लिए बहुत जरूरी है इनकी मदद करना। मैंने आफिस आकर एक पत्र बनाया। पत्र का प्रारूप 
प्रति,
            माननीय राजेश मुणत जी
            नगरीय निकाय मंत्री
            छ.ग. शासन
विषय - मैं वृध्दा एवं मेरे बीमारग्रस्त पुत्र को आर्थिक सहायता एवं 
       शासन की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत सहायता एवं सुविधा 
       प्रदान करने बाबत्।
आदरणीय महोदय,
      निवेदन है कि ..................................................
      ....................................................................................

प्रतिलिपी - 1. श्रीमती प्रतिभा पाटिल, राष्टपति 2. आयुक्त नगर निगम, रायपुर छ.ग. 3. महापौर, नगर निगम, रायपुर छ.ग. 4. श्रीमती रेखारामटेके, पार्षद, वार्ड क्रमांक 43, रायपुर छ.ग.

इस प्रकार से मैंने पत्र लिखा। उसी दिन मेरे वकील मित्र अनिल वर्मा का आफिस में आना हुआ। मैंने उन्हें उस पत्र को दिखाया। उन्होंने पत्र में कुछ लाईन जुड़वाया, जो निम्न थी -
आदरणीय महोदय जी, यदि शासन द्वारा मेरी आर्थिक सहायता एवं योजनाओं के अंतर्गत सुविधा प्रदान नही की जाती है तो मेरे पुत्र को जोकि शारीरिक रूप से अपंग है व बीमारग्रस्त है को मृत्यु दान दें तथा मैं आत्म हत्या करने हेतु बाध्य हो जाऊंगी जिसकी समस्त जिम्मेदारी छ.ग.शासन की होगी। मैं निरक्षर हूं तथा इस पत्र को पढ़वाकर, सुनकर अपनी रजामंदी से अपना अंगूठा निशानी लगाती हूं। ताकि वक्त पर काम आवें।
फिर मैंने घर जाकर पत्र को माता जी को पढ़कर सुनाया और कहा कि आपको किसी प्रकार का कोई शब्द बदलना है तो बदल दूंगा। ठीक है या नही। दोनों मां बेटे ने पत्र पर हामीभर दी और कहा कि सच्चाई तो है, इस पत्र में।
दूसरे दिन 27.06.2011 को मैंने माता जी को लेकर मंत्री महोदय के पास पहुंचा। मैंने उन्हें समझाया दिया था कि महोदय से अच्छे से अपनी समस्या से अवगत कराना। मंत्री जी से मुलाकात हुई माता जी ने अपनी समस्या बताई और मैंने भी महोदय जी से इनकी समस्या को अवगत कराया। मंत्री जी अपने पी. ए. को बुलाया और समस्या के निराकरण हेतु आदेश दिया।
पी. ए. द्वारा छ.ग. हाऊसिंग बोर्ड फोन कर माता जी के लिए कोई कार्य की बात सिफारिश की। छ.ग. हाऊसिंग बोर्ड के अधिकारी ने कहा की शंकर नगर आफिस पर पानी पिलाने का कार्य कर सकती हैं। परन्तु मैंने व माता जी ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि बोरियाकला से बीमार पुत्र को छोड़कर नही आ सकती। आस पास ही कहीं काम दिलवा दीजिए..। पी.ए. जी बोले ठीक है आप अपना नंबर छोड़ दीजिए, जैसे ही कुछ होगा आपको सूचना दे दिया जायेगा। मैंने फोन नं. दिया और हम वहां से निकल पड़े।
माता जी को आटो मे बैठाकर, मैं आफिस के लिए निकला। पत्र की प्रतिलिपी आयुक्त, महापौर और पार्षद महोदया को देना था तो महापौर से मिला।
महापौर ने कहा - आप लोगों को इतनी सुविधा दिया जा रहा हैं परन्तु रोज-रोज कोई ना कोई नई-नई समस्या लेकर आ जाते हो ?
मैंने कहा - मैडम, समस्या आती हैं, तभी तो आपके पास आते हैं, समस्या नहीं रहेगी तो आपके पास क्या करने आऐंगें।
महापौर ने कहा - घर तो दिया गया हैं, अब नौकरी भी देंगे क्या ? सिटी बस लगाया गया हैं, काम करने आ सकती हैं रायपुर।
मैंने कहा - मैडम, रायपुर 13 कि.मी. अपने बीमार पुत्र को छोड़कर नही आ सकती हैं।
महापौर ने कहा - पहले कैसे करती थी ?
मैंने कहा - जल विहार में रहती थी तो आस पास के घरो में काम करती थी अब यहां से रायपुर कैसे जा सकती हैं।
महापौर ने कहा - हाऊसिंग बोर्ड में भी लोग आने लगे हैं वहां पर काम कर सकती हैं। (पास बैठे उनके कुछ लोगों ने भी हामी भर कर, कह रहे थे, हाँ वहीं लोग आने लगे हैं।)
(मैंने थोड़ा आवेश में आकर कहा) - आप लोग यहां रहते हैं। आप लोगों को नही मालूम अभी वहां अधूरा निर्माण है। वह तो मैडम कि कृपा से हम सभी वहां मजबूरी में रह रहे हैं।  
महापौर (थोड़े गुस्से से ) कहा -  ठीक हैं, देखेंगें।
मैंने मैडम को - शुक्रिया कहते हुए बाहर आ गया।
बाहर आकर मैं मन ही मन उन्हें कोसता रहा की किसी गरीब की मजबूरी बड़े ओहदें पर आने के बाद किसी को नही दिखता। बस चुनाव के समय अपना हमदर्द बनकर झूठ का आवरण ओढे रहते हैं। पत्र की प्रतिलिपी देकर मैं आफिस आ गया।
शाम को घर जाने के वक्त पार्षद महोदया के पास पत्र की प्रतिलिपी देने के लिए गया। (पार्षद महोदया नाम की पार्षद हैं, सारा कार्य तो पार्षद पति श्री प्रकाश रामटेके भैया जी ही देखते हैं।) दोनों ही घर पर उपस्थित थे। मैंने पत्र देते हुए समस्या से अवगत करवाया।
पार्षद महोदया पत्र पढ़ने के बाद उन्हें इस बात की चिंता थी, कि पत्र की प्रतिलिपी में मैंने माननीय आयुक्त महोदय जी का नाम, महापौर मैडम के ऊपर रखा था। श्रीमती रेखा रामटेके (पार्षद, वार्ड क्रमांक 43) ने कहा - अरे, महापौर मैडम को आयुक्त के नीचे रखे हो। उन्हें ऊपर रखना था।
मैंने कहा - दीदी मैं तो सभी को बराबर समझता हूं। (मैं मन ही मन सोच रहा था कि पार्षद महोदया को आवेदक की स्थिति की जगह महापौर मैडम की चिंता ज्यादा थी)
रेखा दीदी ने कहा - इसलिए महापौर मैडम ने पत्र का सही जवाब नही दिया होगा।
मैंने कहा - ठीक है। दीदी अगली बार ध्यान रखूंगा। इस गरीब की समस्या का समाधान तो करवाईये।
पार्षद पति (प्रकाश भैया) ने कहा - हमारे हाथ में नहीं हैं। स्कुल में पानी पिलाने का कार्य हम नही रखवा सकते।
मैंने कहा - भैया कुछ तो करवाइए, उन्होनें कहा - शिक्षा मंत्री ही कुछ कर सकते हैं।
मैंने कहा - आप कुछ तो ज्ञान दीजिए, हम अज्ञानी हैं।
प्रकाश भैया - बंटी, तुम सबकुछ जानते हो, होशियार हो मगर बेवकुफ बनते हो। एक काम कर मंत्री महोदय से जनदर्शन में मिलो। (मैंने सोचा कैसा पार्षद है, चाहे तो काम करवा सकता हैं। मगर करना नहीं चाहते हैं)
मैंने कहा - भैया ठीक है। एक काम तो करवा दीजिए, वृध्दा गरीब को 10 किलो चावल अतिरिक्त मुफ्त में मिलता हैं। उसे तो वह दिलवा दीजिए।
उन्होंने कहा - राशन कार्ड है, 35 किलो मिलता है तो 10 किलो नही मिलेगा। किसी और का बनवाना है तो बताओ, बनवा देंगे।
मैंने कहा - आदरणीय, जो सचमुच जरूरतमंद हैं। जिन्हें वाकई में सहायता की आवश्यकता है तो उसका हमें हेल्प करना चाहिए।
प्रकाश भैया - किसी एक आदमी को थोड़े ना सारा सहायता दिलायेगें ?
मैं थोड़ा ताव में आकर कहा - सरकारी योजनाएं किसके लिए है ? जो जरूरतमंद है उसी के लिए ही है ना, जब समय पर सरकार की योजनांए काम नही आऐगी तो क्या मतलब योजनाओं का? वास्तविक हकदार को ना मिले और जो हकदार नही है, जो सक्षम है, उसे लाभ मिले तो क्या मतलब हैं योजनाओं का।
प्रकाश भैया - बंटी, बहुत बोलता है। यह केन्द्र की योजना है। इसके कुछ नियम शर्ते हैं। उसका पालन करना पड़ेगा।
मैंने कहा - ठीक है, कहां बनेगा बताए मैं कोशिश करूंगा।
उन्होंने कहा - ठीक है देखते हैं, कुछ हो पाता हैं या नहीं। ( मैं मन ही मन पार्षद को भी कोसता हुआ घर के लिए निकल पड़ा।)
पांचवे दिन 31.06.2011 को जब माता जी से मिलने गया तो पता चला की मंत्री जी के यहां से फोन आया था और हाऊसिंग बोर्ड बोरिया के इंचार्ज द्वारा घर पर आकर माता जी को आफिस में आने को कहा गया हैं।
मैंने कहा - किससे बात हुई ? कौन से महोदय जी आऐ थे ? क्या नाम था ?
अभिषेक (बीमारग्रस्त) ने कहा - नाम नही पता पर काम पर आने को कहा हैं।
मैंने कहा - किसी का भी फोन आए या कोई भी आए पहले नाम पूछना और कहां से आएं हैं, अब कैसे बात होगी। कैसे पता चलेगा की कौन आया था। ?
      मेरी बात खत्म नहीं हुई थी, घर के दरवाजे पर कोई आया और कहा - आपको आफिस आने को कहा था क्यों नही आई, बस मंत्री जी को शिकायत करते हो, काम वाम नही करना है क्या ? 
मैंने कहा - आइए सर अन्दर बैठिये।
उन्होनें कहा - ठीक है, जल्दी आफिस देख लो और काम चालू कर दो।
मैंने महोदय जी से कहा - जी सर, आफिस मैं भेजता हॅूं।
माता जी मेरे पास आकर, मेरे सिर पर हाथ रखकर रोते, आर्शिवाद देते हुये बोली - बेटा हमने 2 माह पहले से इतने लोगों को, हमारे मोहल्ले के कई सज्जनों को हमारी समस्या बताई और सहायता के लिए कहा परन्तु किसी ने भी हमारी मदद नही की किन्तु बेटा तू अपना कीमती समय निकालकर, हमारा काम करवा दिया। भगवान तुझे बहुत खुशियां दें और भविष्य में हमेशा आगे बढ़ते रहो, तुम्हारी सारी मनोकामनांए पूर्ण हो।
मेरे भी आंखो में खुशी के आंसू आने लगें। मैंने कहा - माता जी, यह तो भगवान की कृपा हैं। मैं तो एक माध्यम हूं, करने वाला तो वह ऊपर वाला भगवान ही हैं।
मेरे आफिस का टाइम होने के कारण मैं वहां से निकल पड़ा। रास्ते भर सोचता रहा और मन में अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी। बस भगवान को धन्यवाद देते हुए। सोच रहा था कि, मेरी मेहनत रंग लाई। रास्ते का समय ऐसे बिता की कब मेरा आफिस आ गया पता ही नही चला।
आफिस पहुंच कर सबसे पहले मैंने अपने वकील मित्र अनिल वर्मा जी को फोन लगाया और अपनी सफलता की कहानी बताकर उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा - वर्मा जी, बहुत-बहुत धन्यवाद आपके हेल्प के कारण हम कामयाब हुए और किसी गरीब का समस्या का समाधान हो गया।
उन्होंने कहा - नही, नही बंटी, यह सब तुम्हारी मेहनत और ऊपर वाले की इच्छा से हुआ है मैंने तो बस पत्र बनाने में थोड़ा हेल्प किया था। (मैंने मन में सोचा सच्चे इंसान की परख इसी से होती है कि वह सफलता का श्रेय केवल अपना ना लेकर अपने साथी जो मदद करता है, उन्हें देतें हैं, वर्मा जी एक सच्चे इंसान हैं।)
मैनें कहा - वर्मा जी, चाहे आपने जैसे भी मेरी मदद की सफलता में आपका भी श्रेय जाता हैं। मैं अपने सभी मित्र जिन्होंने मुझे इस समस्या पर किसी भी तरह से सहायता दिया हैं उन सभी को इस सफलता का श्रेय अवश्य दूंगा।
(इस कार्य पर किसी ना किसी तरह से मेरी मदद किये है वे हैं। मेरी धर्म पत्नी बरखा निहाल, मेरे आदरणीय दिलीप कुमार, आदरणीय पारथो मोंगराज, आदरणीय धनेश्वर लहरी (नरेश भैया), आदरणीय जयंत कंटकार (बाबा भैया) एवं मेरे परिवार वाले। )
मेरे मन में अजीब सी खुशी थी। मुझे लग रहा था कि मैंने बहुत बड़ी जंग जीत ली है। किसी की मदद कर इतनी सुकुन मिलती है, पहली बार एहसास हो रहा था। बहुत ही अच्छा लग रहा था। मैंने ठान लिया की कुछ भी हो जाये। मुझसे जितना हो सके मैं जरूरतमद के लिए जरूर मदद करने के लिए आगे आऊंगा। आप सभी से मेरा अनुरोध है कि जरूरतमंद की मदद कर, एक बार सुकुन की अनुभूति करकें देखें - बंटी निहाल

बुधवार, 13 जुलाई 2011

बिन गुरु ज्ञान नहीं

                   कार्य समाप्त कर घर जाने के लिए दिलीप भैया को फोन लगाया, उन्होंने कहा - आज मुझे आवश्यक कार्य आ जाने के कारण जल्द ही घर के लिए निकल गया हूं, कल साथ मे निकलेंगे। फिर मैंने पारथो भैया को लगाया उन्होनें कहा मुझे मेरे कार्यालय शंकर नगर के पास मिलो चलेंगे। मैं शंकर नगर उनके कार्यालय में पहूंचा और हम साथ मे निकल पड़े। पारथो भैया बहुत ही मस्तमौला इंसान हैं। वे घर जाते वक्त रास्ते में कई बार कुछ ना कुछ खिलाते हैं और मुझे बिल भरने नही देते। मैं ठान लिया था कि इस बार मैं बिल भरूँगा । रास्ते में आनन्द नगर स्थित बिसम्बर भैया का खुश्बु दाबेली सेंटर हैं। मैं पारथों भैया को वहां लेकर गया और एक-एक दाबेली खाने के लिए कहा। पहले तो वे ना नुकुर किये फिर खाने के लिए राजी हो गये। 
                          बिसम्बर भैया दाबेली इतना स्वादिस्ट बनाते है कि दूर-दूर से लोंग खाने आते है, इस दाबेली की खासियत यह है कि वे इसे पाव ब्रेड से नही बर्गर ब्रेड से और स्पेशल मसाले,  अतिरिक्त मखन डालकर बनाते हैं, बहुत ही गजब का स्वाद है दाबेली में। इनके यहाँ बहुत भीड़ भाड़ रहता है, परन्तु परिचित होने के कारण बीच में ही जल्द ही मिल जाता है। एक दाबेली खाने के बाद फिर क्या था, एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद घर के लिए पैकिंग करवा लिया। दाबेली खाते-खाते मैंने पारथो भैया को बताया कि दिलीप भैया को भी पहली बार दाबेली खिलाया तो उन्होंने भी दाबेली की तारिफ की और अपने परिवार के लिए भी पैक करवा कर ले गये।
                        दाबेली खाने के बाद हम घर के लिए निकल ही रहे थे कि मेरी नजर पास के दुकान के पास खड़े मेरे हाई स्कुल के शिक्षक पर पड़ी। उन्हें देखकर मुझे अजीब सा अनुभुति हुआ। मैं तुरंत अपने शिक्षक के चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लिया, मुझे देखकर मेरे शिक्षक बहुत ही प्रसन्नता से पूछा और कैसा है हाल-चाल, बहुत दिनों बाद मिले। 
मैंने कहा - बस सर, आपके आशिर्वाद से सब ठीक चल रहा हैं। 
शिक्षक ने कहा - क्या कर रहे हो आज कल ? 
मैने कहा - कुछ नही, बस एक अखबार में उप संपादक हूं। 
              मेरे इतना कहने पर उनकी खुशी और बढ़ गई और उन्होंने कहा - शाबाश बेटा, अच्छा कार्य कर रहे हो, अपने छात्रों को अच्छे मुकाम पर देखकर मन प्रसन्न हो जाता हैं। कहते हुए मेरी पीठ थप्पथपाई 
मैंने कहा - बस आपका आशिर्वाद हमेशा बना रहे। 
उन्होंने कहा - हम इतने छात्रों को शिक्षा देते है और ये छात्र आगे चलकर अच्छे-अच्छे कार्य करते हैं तो इससे बढ़कर हमारे लिए खुशी की क्या बात होगी ? 
मैंने कहा - आप शिक्षकों की मेहनत की वजह से ही छात्र-छात्राऐं आगे बढ़ते हैं। इसमें आप सभी का ही हाथ होता है। 
उन्होंने कहा - हम तो अपना कर्तव्य निभाते हैं, आगे छात्र कितना मेहनत करता है और सही मार्ग पर चलता है, यह उसके ऊपर हैं। फिर उन्होने कहा अच्छा लगा मिलकर, मिलते रहना। ( अजीब सी खुशी देखी मैंने उनकी आंखों में।)
              कितनी ही अजीब बात है। पहले शिक्षक इसे अपना कर्तव्य मान कर शिक्ष दिया करते थे और एक आज के शिक्षक है जो पहले प्राथमिकता शिक्षा के बजाय पैसों को देते हैं। इसका एक ताजा उदाहरण ''पीएमटी पर्चा लीक कांड'' ही देख लीजिए। आज कल के शिक्षक प्रोफेशनल हो गये है और शिक्षा को अपने फायदे के लिए बेचने लगें हैं। यदि सभी शिक्षक अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तो देश का भविष्य नौजवान छात्र-छात्राऐं देश की उन्नति में कितना साथ दे सकते है। यदि शिक्षक चाहें तो अपने छात्रों को ऊचांइयों पर पहुंचा सकता हैं, देश के नौजवान को सही राह दिखाना उन्हें उचित मार्ग दर्शन देना ही गुरू है और गुरू के सिखाए व दिखाऐ गये राह पर चलना ही सच्चा शिष्य कहलाता है। जो शिक्षा देता है वह ही गुरू नही अपितु गुरू चाहे आपको आपके जीवन में किसी भी तरह से शिक्षा दे गुरू कहलाएंगे। जो आपके मुश्किल समय मे आपका साथ थे वह भी गुरू हो सकता हैं। 
                           मेरे जीवन मुझे अभी तक जिन्होने शिक्ष दिया है। मेरी माता, वे सभी शिक्षक जिन्होनें मुझे शिक्षा दिया और मेरे धार्मिक गुरू श्री यदुराम साहु जिन्होंने हमें धार्मिक ज्ञान दिया है। इसके साथ ही मेरे बॉस श्री मधुर चितलांग्या जिनके द्वारा मुझे बहुत सी बाते व ज्ञान सिखने के लिए मिला, साथ ही जिन्होंने मुझे पेपर मेकिंग सिखाया श्री मधु सुदन जी व जिन्होंने मुझे वीडियो मिक्सींग सिखाया श्री मुकेश जी, व जिन्होंने मुझे कानुनी ज्ञान दिया श्री दिनेशराय द्विवेदी, राजस्थान, व अनिल कुमार वर्मा (एडव्होकेट) रायपुर. मेरे गुरु ने कहा है जिसका कोई गुरु नहीं उसका गुरु हनुमान जी  और साईं बाबा है.
                          मेरे  सभी आदरणीय गुरूजनों को मेरा सादर नमन - बंटी निहाल, रायपुर 

सोमवार, 11 जुलाई 2011

"हाथी चले बाज़ार, कुत्ते भोंके हज़ार"

आपने पिछले अंक में (जनता बहुत चलाक है.) पढ़ा था की महापौर  को समस्या से अवगत करने हेतु संघ द्वारा महापौर से समय लिया गया था परन्तु किसी कारणवश उनका आना नहीं हो पाया अब आगे......... 
दुसरे दिन हम सभी सदस्य  मोह्लावासीयो को बताने लगे की महापौर इस रविवार नहीं आ पाएंगी. इससे  सभी मोह्लावासी उदास हो गए और कहने लगे, आये जाहे ना आये अगली बार कोई नहीं रहेगा. यहाँ तक की कुछ ने तो यह कह दिया की आप लोग बस झूठ बोलते है. महापौर का क्या काम है ? उसका मतलब निकल गया, अब वो क्या करेगी आकर. कुछ लोग कहने लगे की आप लोग राजनीति मत करो यहाँ पर जो राजनीति करेगा उसे बहुत मार पड़ेगी. हमें हमारे हाल पर छोड़ दो नहीं तो ठीक नहीं होगा.  हमारे द्वारा उन्हें समझाने की कोशिश किया गया परन्तु वे मानने वाले नहीं थे. ये इस प्रकार के लोग होते है जो खुद सामने नहीं आयेगे परन्तु किसी और को भी नहीं आने देंगे. इन्ही कुछ लोगों की वजह से हम सब पीछे है. हमारे संगठन सचिव श्री अब्दुल रउफ खान  ने कहा की इनकी बातों को बुरा मत मानो, ये ऐसे ही है, बस टांग खीचते है. हाथी चले बाज़ार कुत्ते भोके हज़ार. अच्छे कार्य के लिए हमेशा ठोकर खाना पड़ता है. बस अपना कार्य करते रहो.
मैंने कहा - यदि सभी इन लोगों के जैसे सोचेंगे तो कौन आगे आएगा. किसी को तो आगे आना है. या तमाशा देखते रहेंगे ?
सभी ने कहा - आप ठीक बोल रहे है. हमें अपने कार्य को देखना चाहिए, आगे क्या करना है उसे सोचे ? फिर हम सभी ने यह निर्णय लिया की महापौर के पास दुबारा जाकर समय फ़ाइनल करेंगे, सभी ठीक ४ बजे नगर निगम कार्यालय में आ  जाना कहते हुए अपने अपने कार्य को निकल पड़े.
मैं अपने ऑफिस के मित्र दीपक यादव के साथ चाय पीने ४ बजे नीचे उतरा था. तभी संघ के अध्यक्ष श्री धनेश्वर लहरी (नरेश भैया) जी का फ़ोन आया. उन्होंने कहा - मैं अभी रस्ते में हूँ, मैं दिलीप भाई के साथ पहचुंगा, तुम कहाँ हो ? मैंने कहा - मैं भी निकल रहा हूँ. वही मिलता हूँ. फिर क्या था हमारे सचिव श्री पार्थो जी का भी फ़ोन आने लगा. मैं पहुचने वाला था तो फ़ोन नहीं उठाया और उनके पास पहुँच गया. 
पार्थो जी ने कहा - अरे यार मैं कब से निगम कार्यालय पहुँच कर तुम लोगो का इंतजार कर रहा हूँ अभी तक हमारे अध्यक्ष भी नहीं पहुंचे. मैंने कहा की वो भी रास्ते मैं है. बस आ ही रहे होंगे. थोड़े देर में वे भी आ गये. हम सभी तैयारी कर महापौर के पास गए.  थोड़े इन्तजार के बाद महापौर मीटिंग ख़त्म कर आई. बहुत से लोग उनका इन्तजार कर रहे थे. उनके आते ही सभी उन्हें मुस्कुराते हुए नमस्कार किये. कुछ लोगो का महापौर के नए कार्यालय आने पर उन्हें बधाई देने के लिए ताँता भी लगा हुआ था. एक पार्टी ने मिठाई का डिब्बा महापौर को दिया महापौर ने सभी को खिलाने का इशारा किया फिर क्या था सभी की ओर मिठाई का डिब्बा घूमता हुआ  मेरे पास भी आई मैंने मिठाई उठाई, काजू कतली बहुत ही अच्छी लगी.
महापौर की नज़र हमारे पास पड़ी उन्होंने तपाक से बोला - अरे, आप लोग बोरिया वाले हो ना ?
संघ के अध्यक्ष ने खड़े होकर कहा - जी मैडम
महापौर ने कहा - मैंने मंगलवार को ८ बजे आने के लिए कह चुकी हूँ फिर आप लोग कैसे.?
नरेश भैया ने कहा - हमें किसी प्रकार की कोई सुचना नहीं मिली है , तो कंफर्म करने आये थे.
महापौर ने कहा - क्या मुझे कार्ड छपवाना पड़ेगा ? ८ बजे आ रही हूँ. यदि कोई दारु पिया हुआ मेरे पास आया तो ठीक नहीं होगा ? वहां किसी भी प्रकार का हल्ला चिल्ला नहीं होना चाहिए इसकी जिम्मेदारी आप लोगों की है.
पार्थो जी ने तुरंत कहा - देखिये महोदया हम इतनी जनता में कब कौन क्या करे नहीं कह सकते है. मगर एक बात है जनता इतनी जल्दी भी सुबह ८ बजे नहीं पी सकती. यदि इस प्रकार से कोई आपके पास आये तो आप जरुर उसे एक तमाचा मार सकती है.
महापौर ने कहा - मेरा बस चलता तो जरुर मारती, मीडिया वाले रहतें है इसलिए कुछ नहीं कर सकती. हम सभी हँसते हुए, ठीक है कह कर बाहर आ गये.
कार्यालय से बाहर आकर हमें बहुत बुरा लग रहा था. हमने तभी अटकले लगाना चालू किया की हो न हो जरुर महापौर को पार्षद द्वारा भ्रमित किया गया होगा तभी उनके द्वारा रविवार को आने के लिए मना किया गया था. हमें समझ नहीं आ रहा था की इतनी जल्दी सभी को कैसे खबर किया जाये. हम सभी तुरंत निकल कर तैयारी करने के लिए बोरिया प्रस्थान किया. रात के २ बजे तक हमें नींद नहीं आई, बस तैयारी में लगे थे. सुबह जल्दी उठना था इसलिए मीटिंग जल्द  ख़त्म कर सभी सोने के लिए चले गए. सुबह 6 बजे उठ कर, सभी अपने अपने कार्य पर लग गए कोई फूल लेने गया] तो कोई बैनर- पोस्टर लगाने में लग गया. धीरे-धीरे समय का पता ही नहीं चला ८ बजे आने वाली महापौर मैडम ९.३० को पहुची. उनका जोरदार तरीके से स्वागत किया गया. उनके चेहरे पर मीठी मुस्कान थी. उन्होंने इसकी आशा नहीं की थी की इस तरह से उनका स्वागत सत्कार होगा. उन्होंने तो सोचा भी नहीं था की वे यहाँ जाने के लिए डर रही थी. वहां इतना अच्छा रेस्पोंस मिलेगा. सबसे पहले उनका स्वागत किया गया और फिर अपनी समस्याओ के बारे में अवगत कराया गया. पार्षद महोदय भी दो शब्द कहे और महापौर ने भी ख़ुशी-ख़ुशी समस्याओ का  निराकरण करने का आश्वासन दिया. और चली गयी.  
हमें ख़ुशी हुई की हमारे प्रयास कामयाब हो गया. पूरे कार्यक्रम के लिए संघ के सदस्य द्वारा १०० - १००  रुपये  चंदा किया गया था. बजट ज्यादा हो गया था, संघ के सचिव श्री पार्थो भैया द्वारा अतिरिक्त १००० रुपये दिया गया, जिसे बाद में चंदा कर लौटने की बात तय की गयी. फिर सभी अपने अपने कार्य के लिए चले गए. 
शाम को ८ बजे घर वापसी में पता चला की  कुछ लोंगों द्वारा तरह-तरह की बातें हो रही है, कोई कह रहा है की महापौर ने स्वागत समारोह के लिए ५००० रुपये दिया. तो कोई कह रहा था की १०० - १०० रुपये चंदा कर, बचाकर खूब मौज मस्ती किया गया है. तो कोई कहा सभी सदस्य को १००० रुपये मिले है. 
अब आप ही बताइए की हमें समारोह के लिए पार्थो जी से उधार १००० रुपये लेने पड़े और ये लोग तरह-तरह की बातें कर रहे है. खैर इसे छोडिये इनका काम ही यही है एक रुपये देना नहीं और ५००० रुपये की बात करते है. किसी ने सच कहा है की " हाथी चले बाज़ार,कुत्ते भोंके हज़ार" .................... शुक्रिया 

शनिवार, 9 जुलाई 2011

जनता बहुत चलाक है.

              तेलीबांधा तालाब सौन्दर्यीकरण से प्रभावित नागरिको को अस्थाई बोरियाकला हाऊसिंग बोर्ड कालोनी मे विस्थापित किया गया है. प्रभावित नौकरी, अपने कार्य करने रायपुर शहर लगभग १३ किलोमीटर आना जाना होता है। इसके लिए शासन द्वारा २ सिटी बस सुबह ८.०० बजे और ९.३० बजे आती है. परन्तु वहां की जनता जो लगभग ४००० परिवार है उन्हें २ सिटी बस ( क्षमता लगभग ४० से ५० सीटर )  से क्या होने वाला ? इसलिए हमारे यहाँ के ऑटो रिक्शा चालक भाइयो की निकल पड़ी. लगभग एक माह तक बहुत ही अच्छी कमाई होने लगी. फिर क्या था बहुतो को कमाने का चस्का लगा और देखते-देखते लगभग ३० से ४० ऑटो आ गये. किसी ने उधार, तो किसी ने सोना बेचा और ऑटो ले लिया. लगता है की आने वाले सालों में ऑटो की संख्या और बढेगी. 
                यहाँ की जनता भी उतनी ही चलाक है. ऑटो में बैठती है मगर जैसे ही सिटी बस आती है. उठकर बस में चले जाते है, जाते भी क्यों न ( पास जो बना था २ माह का) हमेशा ऐसा बार-बार करने पर एक ऑटो वाले को  गुस्सा आ गया उसने सवारी को बोल दिया, अगली बार मेरे ऑटो में मत बैठना बस से ही आना जाना करना. जो समझदार था वो तो चुपचाप बैठ गया परन्तु जो जिद्दी थे, वो बस में चले गए. समझदार व्यक्ति करता भी क्या ?सरकारी बस कब तक साथ देगा. कभी-कभी बस आता ही नहीं, से में खतरा मोल नहीं ले सकता था. आखिर ऑटो वाला अपना ही मोहल्ले का है. 
               ''बोरियाकला अस्थाई व्यवस्थापित निवासी संघ'' ने कालोनी में विभिन्न समस्याओ के निराकरण के लिए  महापौर को बुला कर दिखाने का निर्णय लिया और प्रतीनिधियो द्वारा महापौर से समय लेने के लिए  कार्यालय पहुंचे और पार्षद महोदय का इन्तजार करने लगे. पार्षद नहीं आने पर अध्यक्ष द्वारा उन्हें फोन करने पर, पार्षद ने रास्ते में हूँ कहा. इसी प्रकार ३ से ४ बार फोन करने पर वही जवाब मिलता. फिर पता चला की महापौर महोदय का गाड़ी लग रहा है उन्हें निकलना है.  हमने पार्षद का इन्तजार ख़त्म कर महापौर श्रीमती किरणमयी नायक के कार्यालय में गए. और सविनय निवेदन किया की एक बार आप बोरियाकला आकर हमारे समस्या को देखे. 
महापौर ने  पार्षद जी को फोन लगाया और कहा मैं पार्षद जी के साथ ही आउंगी ( अकेले आये भी कैसे जनता नाराज जो थी उनसे, जनता के आक्रोश के डर के कारण अकेले नहीं आना चाहती है.) फिर उन्होंने पूछा कब आना है ? 
अध्यक्ष श्री धनेश्वर लहरी ने कहा- मैडम हमारे यहाँ के सभी जनता अपने अपने कार्य में व्यस्त रहते है उन्हें बस रविवार को ही समय मिलता है. आप यदि रविवार को आएँगी तो सभी के सामने चर्चाये हो जाएँगी, आपकी कृपा होगी. 
उन्होंने कहा - ठीक है, मैं रविवार को आउंगी, क्या प्रोग्राम है आप लोगो का ? 
संघ के सचिव श्री पार्थो राव मोगराज जी ने कहा - मैडम आप हमारी परिवार की सदस्य है. हम कुछ नहीं कर सकते, बस हमारे पास जो कुछ मिलेगा उसी से, कम से कम एक गिलास पानी तो जरुर पिला सकते है.
महापौर मुस्कुराते हुए बोली- हां जरुर. 
               फिर सभी सदस्य हसते हुए  ख़ुशी- ख़ुशी बहार निकले. पार्षद महोदय अभी तक नहीं पहुँच पाए थे. उन्हें फ़ोन लगाया परन्तु फ़ोन नहीं लगा. हम सभी जोरो सोरो से तयारी में भीड़ गए. फिर पार्षद जी का फोन आया उन्होंने कहा की महापौर जी रविवार को नहीं आ पाएंगी. उनका दूसरा प्रोग्राम बन गया है. उन्हें जगनाथ मंदिर, सीएम और राज्यपाल के प्रोग्राम में जाना है. फिर क्या था हम सभी को गुस्सा आने लगा. सभी तैयारिया पूरी हो चुकी थी.  आगे के बारे में अगले अंक में विस्तार से लिखूंगा........धन्यवाद