मेरे मोहल्ले की एक विधवा वृध्दा महिला जिसकी उम्र लगभग 65 साल है। उसके 2 बेटे हैं। उसका बड़ा लड़का है पर ना के बराबर वह अपने माता और अपने बीमार छोटे भाई को छोड़कर अपनी बीबी के साथ अलग रहता है। वृध्दा और उसका बीमार पुत्र दोनों साथ रहतें है। 5 साल पहले उसका छोटा पुत्र खेलता, कुदता और डांस करता मगर जालिम बीमारी से उसकी खुशी देखी नहीं गई और बेचारा बीमारग्रस्त हो गया। बहुत से डाक्टरों और दवा-दारू किया गया परन्तु वह ठीक नही हो पाया। उसे मेकाहारा में भर्ती कराया गया। डाक्टरों ने आपरेशन की बात की गरीबी रेखा कार्ड होने के कारण सरकार द्वारा संजीवनी कोष से सहायता राशि प्राप्त हुई और आपरेशन भी हो गया किन्तु पहले थोड़ा बहुत चल फिर सकता था मगर आपरेशन के बाद तो और प्राब्लम होने लगा। अब वह उठ बैठ नही सकता, उसका देखरेख उसकी वृध्दा माता को करनी पड़ती है। बस बिस्तर पर पड़ा रहता हैं और भगवान से दुआ करता है कि कब उसे मुक्ति मिलें। उम्र अधिक होने के कारण वह अधिक कार्य भी नही कर सकती। बीमार बेटे को छोड़कर वह कहीं जा भी नहीं सकती, बस आस-पास ही किसी के यहां बर्तन साफ कर, पोछा लगाकर अपना व बेटे का पेट पालती थी।
दिनांक 18.04.2011 को तेलीबांधा तालाब योजना में जलविहार को तोड़कर निवासियों को बोरियाकला में शिफ्ट किया गया है। तब से और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा है। बीमार बेटे को छोड़कर बोरियाकला से रायपुर लगभग 13 कि.मी. दूर जाये भी तो कैंसे? राशन कार्ड से चावल तो मिलता है परन्तु जीवन यापन के लिए केवल चावल ही काफी नहीं है। केवल चावल को खाकर कोई रह सकता है, क्या ? साग-सब्जी, हल्दी, मिर्च, तेल, नमक की आवश्यकता तो आम आदमी को होती ही है। 2 माह तक कैसे उनका गुजारा हुआ है वहीं जानती हैं। एक दिन मैं उसी ब्लाक में अपने रिश्तेदार के यहां गया था। वापसी में, मेरा अचानक उनके घर जाना हुआ। मिलने पर मुझसे उन्होंने मदद की गुहार लगाई ( इससे पहले भी मैं मेकाहारा में आपरेशन के वक्त उनके लिए दौंड भाग किया था ) मुझसे उनकी हालत देखी नहीं गई। मैंने ठान लिया की इनके लिए कुछ ना कुछ जरूर करूंगा। मेरा अंतर्मन मुझे गवाही दे रहा था कि इंसानियत के लिए बहुत जरूरी है इनकी मदद करना। मैंने आफिस आकर एक पत्र बनाया। पत्र का प्रारूप
प्रति,
माननीय राजेश मुणत जी
नगरीय निकाय मंत्री
छ.ग. शासन
विषय - मैं वृध्दा एवं मेरे बीमारग्रस्त पुत्र को आर्थिक सहायता एवं
शासन की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत सहायता एवं सुविधा
प्रदान करने बाबत्।
शासन की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत सहायता एवं सुविधा
प्रदान करने बाबत्।
आदरणीय महोदय,
निवेदन है कि ..................................................
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प्रतिलिपी - 1. श्रीमती प्रतिभा पाटिल, राष्टपति 2. आयुक्त नगर निगम, रायपुर छ.ग. 3. महापौर, नगर निगम, रायपुर छ.ग. 4. श्रीमती रेखारामटेके, पार्षद, वार्ड क्रमांक 43, रायपुर छ.ग.
इस प्रकार से मैंने पत्र लिखा। उसी दिन मेरे वकील मित्र अनिल वर्मा का आफिस में आना हुआ। मैंने उन्हें उस पत्र को दिखाया। उन्होंने पत्र में कुछ लाईन जुड़वाया, जो निम्न थी -
आदरणीय महोदय जी, यदि शासन द्वारा मेरी आर्थिक सहायता एवं योजनाओं के अंतर्गत सुविधा प्रदान नही की जाती है तो मेरे पुत्र को जोकि शारीरिक रूप से अपंग है व बीमारग्रस्त है को मृत्यु दान दें तथा मैं आत्म हत्या करने हेतु बाध्य हो जाऊंगी जिसकी समस्त जिम्मेदारी छ.ग.शासन की होगी। मैं निरक्षर हूं तथा इस पत्र को पढ़वाकर, सुनकर अपनी रजामंदी से अपना अंगूठा निशानी लगाती हूं। ताकि वक्त पर काम आवें।
फिर मैंने घर जाकर पत्र को माता जी को पढ़कर सुनाया और कहा कि आपको किसी प्रकार का कोई शब्द बदलना है तो बदल दूंगा। ठीक है या नही। दोनों मां बेटे ने पत्र पर हामीभर दी और कहा कि सच्चाई तो है, इस पत्र में।
दूसरे दिन 27.06.2011 को मैंने माता जी को लेकर मंत्री महोदय के पास पहुंचा। मैंने उन्हें समझाया दिया था कि महोदय से अच्छे से अपनी समस्या से अवगत कराना। मंत्री जी से मुलाकात हुई माता जी ने अपनी समस्या बताई और मैंने भी महोदय जी से इनकी समस्या को अवगत कराया। मंत्री जी अपने पी. ए. को बुलाया और समस्या के निराकरण हेतु आदेश दिया।
पी. ए. द्वारा छ.ग. हाऊसिंग बोर्ड फोन कर माता जी के लिए कोई कार्य की बात सिफारिश की। छ.ग. हाऊसिंग बोर्ड के अधिकारी ने कहा की शंकर नगर आफिस पर पानी पिलाने का कार्य कर सकती हैं। परन्तु मैंने व माता जी ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि बोरियाकला से बीमार पुत्र को छोड़कर नही आ सकती। आस पास ही कहीं काम दिलवा दीजिए..। पी.ए. जी बोले ठीक है आप अपना नंबर छोड़ दीजिए, जैसे ही कुछ होगा आपको सूचना दे दिया जायेगा। मैंने फोन नं. दिया और हम वहां से निकल पड़े।
माता जी को आटो मे बैठाकर, मैं आफिस के लिए निकला। पत्र की प्रतिलिपी आयुक्त, महापौर और पार्षद महोदया को देना था तो महापौर से मिला।
महापौर ने कहा - आप लोगों को इतनी सुविधा दिया जा रहा हैं परन्तु रोज-रोज कोई ना कोई नई-नई समस्या लेकर आ जाते हो ?
मैंने कहा - मैडम, समस्या आती हैं, तभी तो आपके पास आते हैं, समस्या नहीं रहेगी तो आपके पास क्या करने आऐंगें।
महापौर ने कहा - घर तो दिया गया हैं, अब नौकरी भी देंगे क्या ? सिटी बस लगाया गया हैं, काम करने आ सकती हैं रायपुर।
मैंने कहा - मैडम, रायपुर 13 कि.मी. अपने बीमार पुत्र को छोड़कर नही आ सकती हैं।
महापौर ने कहा - पहले कैसे करती थी ?
मैंने कहा - जल विहार में रहती थी तो आस पास के घरो में काम करती थी अब यहां से रायपुर कैसे जा सकती हैं।
महापौर ने कहा - हाऊसिंग बोर्ड में भी लोग आने लगे हैं वहां पर काम कर सकती हैं। (पास बैठे उनके कुछ लोगों ने भी हामी भर कर, कह रहे थे, हाँ वहीं लोग आने लगे हैं।)
(मैंने थोड़ा आवेश में आकर कहा) - आप लोग यहां रहते हैं। आप लोगों को नही मालूम अभी वहां अधूरा निर्माण है। वह तो मैडम कि कृपा से हम सभी वहां मजबूरी में रह रहे हैं।
महापौर (थोड़े गुस्से से ) कहा - ठीक हैं, देखेंगें।
मैंने मैडम को - शुक्रिया कहते हुए बाहर आ गया।
बाहर आकर मैं मन ही मन उन्हें कोसता रहा की किसी गरीब की मजबूरी बड़े ओहदें पर आने के बाद किसी को नही दिखता। बस चुनाव के समय अपना हमदर्द बनकर झूठ का आवरण ओढे रहते हैं। पत्र की प्रतिलिपी देकर मैं आफिस आ गया।
शाम को घर जाने के वक्त पार्षद महोदया के पास पत्र की प्रतिलिपी देने के लिए गया। (पार्षद महोदया नाम की पार्षद हैं, सारा कार्य तो पार्षद पति श्री प्रकाश रामटेके भैया जी ही देखते हैं।) दोनों ही घर पर उपस्थित थे। मैंने पत्र देते हुए समस्या से अवगत करवाया।
पार्षद महोदया पत्र पढ़ने के बाद उन्हें इस बात की चिंता थी, कि पत्र की प्रतिलिपी में मैंने माननीय आयुक्त महोदय जी का नाम, महापौर मैडम के ऊपर रखा था। श्रीमती रेखा रामटेके (पार्षद, वार्ड क्रमांक 43) ने कहा - अरे, महापौर मैडम को आयुक्त के नीचे रखे हो। उन्हें ऊपर रखना था।
मैंने कहा - दीदी मैं तो सभी को बराबर समझता हूं। (मैं मन ही मन सोच रहा था कि पार्षद महोदया को आवेदक की स्थिति की जगह महापौर मैडम की चिंता ज्यादा थी)
रेखा दीदी ने कहा - इसलिए महापौर मैडम ने पत्र का सही जवाब नही दिया होगा।
मैंने कहा - ठीक है। दीदी अगली बार ध्यान रखूंगा। इस गरीब की समस्या का समाधान तो करवाईये।
पार्षद पति (प्रकाश भैया) ने कहा - हमारे हाथ में नहीं हैं। स्कुल में पानी पिलाने का कार्य हम नही रखवा सकते।
मैंने कहा - भैया कुछ तो करवाइए, उन्होनें कहा - शिक्षा मंत्री ही कुछ कर सकते हैं।
मैंने कहा - आप कुछ तो ज्ञान दीजिए, हम अज्ञानी हैं।
प्रकाश भैया - बंटी, तुम सबकुछ जानते हो, होशियार हो मगर बेवकुफ बनते हो। एक काम कर मंत्री महोदय से जनदर्शन में मिलो। (मैंने सोचा कैसा पार्षद है, चाहे तो काम करवा सकता हैं। मगर करना नहीं चाहते हैं)
मैंने कहा - भैया ठीक है। एक काम तो करवा दीजिए, वृध्दा गरीब को 10 किलो चावल अतिरिक्त मुफ्त में मिलता हैं। उसे तो वह दिलवा दीजिए।
उन्होंने कहा - राशन कार्ड है, 35 किलो मिलता है तो 10 किलो नही मिलेगा। किसी और का बनवाना है तो बताओ, बनवा देंगे।
मैंने कहा - आदरणीय, जो सचमुच जरूरतमंद हैं। जिन्हें वाकई में सहायता की आवश्यकता है तो उसका हमें हेल्प करना चाहिए।
प्रकाश भैया - किसी एक आदमी को थोड़े ना सारा सहायता दिलायेगें ?
मैं थोड़ा ताव में आकर कहा - सरकारी योजनाएं किसके लिए है ? जो जरूरतमंद है उसी के लिए ही है ना, जब समय पर सरकार की योजनांए काम नही आऐगी तो क्या मतलब योजनाओं का? वास्तविक हकदार को ना मिले और जो हकदार नही है, जो सक्षम है, उसे लाभ मिले तो क्या मतलब हैं योजनाओं का।
प्रकाश भैया - बंटी, बहुत बोलता है। यह केन्द्र की योजना है। इसके कुछ नियम शर्ते हैं। उसका पालन करना पड़ेगा।
मैंने कहा - ठीक है, कहां बनेगा बताए मैं कोशिश करूंगा।
उन्होंने कहा - ठीक है देखते हैं, कुछ हो पाता हैं या नहीं। ( मैं मन ही मन पार्षद को भी कोसता हुआ घर के लिए निकल पड़ा।)
पांचवे दिन 31.06.2011 को जब माता जी से मिलने गया तो पता चला की मंत्री जी के यहां से फोन आया था और हाऊसिंग बोर्ड बोरिया के इंचार्ज द्वारा घर पर आकर माता जी को आफिस में आने को कहा गया हैं।
मैंने कहा - किससे बात हुई ? कौन से महोदय जी आऐ थे ? क्या नाम था ?
अभिषेक (बीमारग्रस्त) ने कहा - नाम नही पता पर काम पर आने को कहा हैं।
मैंने कहा - किसी का भी फोन आए या कोई भी आए पहले नाम पूछना और कहां से आएं हैं, अब कैसे बात होगी। कैसे पता चलेगा की कौन आया था। ?
मेरी बात खत्म नहीं हुई थी, घर के दरवाजे पर कोई आया और कहा - आपको आफिस आने को कहा था क्यों नही आई, बस मंत्री जी को शिकायत करते हो, काम वाम नही करना है क्या ?
मैंने कहा - आइए सर अन्दर बैठिये।
उन्होनें कहा - ठीक है, जल्दी आफिस देख लो और काम चालू कर दो।
मैंने महोदय जी से कहा - जी सर, आफिस मैं भेजता हॅूं।
माता जी मेरे पास आकर, मेरे सिर पर हाथ रखकर रोते, आर्शिवाद देते हुये बोली - बेटा हमने 2 माह पहले से इतने लोगों को, हमारे मोहल्ले के कई सज्जनों को हमारी समस्या बताई और सहायता के लिए कहा परन्तु किसी ने भी हमारी मदद नही की किन्तु बेटा तू अपना कीमती समय निकालकर, हमारा काम करवा दिया। भगवान तुझे बहुत खुशियां दें और भविष्य में हमेशा आगे बढ़ते रहो, तुम्हारी सारी मनोकामनांए पूर्ण हो।
मेरे भी आंखो में खुशी के आंसू आने लगें। मैंने कहा - माता जी, यह तो भगवान की कृपा हैं। मैं तो एक माध्यम हूं, करने वाला तो वह ऊपर वाला भगवान ही हैं।
मेरे आफिस का टाइम होने के कारण मैं वहां से निकल पड़ा। रास्ते भर सोचता रहा और मन में अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी। बस भगवान को धन्यवाद देते हुए। सोच रहा था कि, मेरी मेहनत रंग लाई। रास्ते का समय ऐसे बिता की कब मेरा आफिस आ गया पता ही नही चला।
आफिस पहुंच कर सबसे पहले मैंने अपने वकील मित्र अनिल वर्मा जी को फोन लगाया और अपनी सफलता की कहानी बताकर उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा - वर्मा जी, बहुत-बहुत धन्यवाद आपके हेल्प के कारण हम कामयाब हुए और किसी गरीब का समस्या का समाधान हो गया।
उन्होंने कहा - नही, नही बंटी, यह सब तुम्हारी मेहनत और ऊपर वाले की इच्छा से हुआ है मैंने तो बस पत्र बनाने में थोड़ा हेल्प किया था। (मैंने मन में सोचा सच्चे इंसान की परख इसी से होती है कि वह सफलता का श्रेय केवल अपना ना लेकर अपने साथी जो मदद करता है, उन्हें देतें हैं, वर्मा जी एक सच्चे इंसान हैं।)
मैनें कहा - वर्मा जी, चाहे आपने जैसे भी मेरी मदद की सफलता में आपका भी श्रेय जाता हैं। मैं अपने सभी मित्र जिन्होंने मुझे इस समस्या पर किसी भी तरह से सहायता दिया हैं उन सभी को इस सफलता का श्रेय अवश्य दूंगा।
(इस कार्य पर किसी ना किसी तरह से मेरी मदद किये है वे हैं। मेरी धर्म पत्नी बरखा निहाल, मेरे आदरणीय दिलीप कुमार, आदरणीय पारथो मोंगराज, आदरणीय धनेश्वर लहरी (नरेश भैया), आदरणीय जयंत कंटकार (बाबा भैया) एवं मेरे परिवार वाले। )
मेरे मन में अजीब सी खुशी थी। मुझे लग रहा था कि मैंने बहुत बड़ी जंग जीत ली है। किसी की मदद कर इतनी सुकुन मिलती है, पहली बार एहसास हो रहा था। बहुत ही अच्छा लग रहा था। मैंने ठान लिया की कुछ भी हो जाये। मुझसे जितना हो सके मैं जरूरतमद के लिए जरूर मदद करने के लिए आगे आऊंगा। आप सभी से मेरा अनुरोध है कि जरूरतमंद की मदद कर, एक बार सुकुन की अनुभूति करकें देखें - बंटी निहाल